Friday, December 28, 2007

****कज़ा*****

मेरी कज़ा पे वो संगदिल जशन मनायेगा,
मस्रते चिरागा को वो बेदर्दी से जलायेगा,

रोयेगी मेरी रूह ज़ार ज़ार तब मेरे मौला,
और वो मुस्कुरा के एक नया जाम उठायेगा,

ना आयेगा कभी वो मेरी मजबूर मज़ार पर,
अपनी बेरुखी से वो और मुझे तडपायेगा,

ना ज़िन्दगी ना मौत सुकून दे सकेगी तब,
जब मेरे किस्से वो हंस हंस के दोस्तो को सुनायेगा,

क्या मिला तुझको बेवफा पर मर मिट के,
क्या ऐसा रिश्ता कभी प्यार कहलायेगा ?

*****फरेब-ए-मोहब्बत******

तू जो बदल गया तो सहर-ए-आरज़ू,
ऐसा उजड गया के बसा आज तक नही,

दिल मे तेरे फरेब-ए-मोहब्बत के कुछ नक़्श,
यूं सभा हुए के मिटे आज तक नही,

जिनके बेगैर रात ना दिनको सकून था,
वो ऐसे खो गये के मिले आज तक नही,

तेरे दिये हुए वो मोहब्बत भरे खत,
इस तरह जल गये के बची राख तक नही,

अब हम भी सोचते है इसे भुल जाये,
लेकिन ये बात दिल से कही आज तक नही

******आदत छुडा दो फिर चले जाना*******

सकूत-ए-जान का मतलब बता दो फिर चले जाना,
या फिर सर्गोशियाँ दिलकी सुना दो फिर चले जाना,

जो मेरा और तुम्हारा वक़्त गुज़रा हसने रोने मे,
उसे पूरी तरह से तुम भुला दो फिर चले जाना,

ये सारे पेड पौधे तुम बीन कई रात जागे है,
तुम आके एक बार इनको सुला दो फिर चले जाना,

किसी को चाहने का और किसी से चाहे जाने का,
जो है एहसास तुम उसको भुला दो फिर चले जाना,

बस एक मुर्दा हंसी से अपने अश्क़ो को छुपाने का,
जो फन आता है तुमको, वो सिखा दो फिर चले जाना,

वो जो एक लफ्ज़-ए-उल्फत है जुदा है अपने मानी से,
बस इन अल्फाज़-ए-मानि को मिला दो फिर चले जाना,

जो कहते कहते रूक गये उन सारी बातो की,
समात को तलब है वो सुना दो फिर चले जाना,

ना जाने क्यो है लेकिन देखने की तुमको आदत है,
मेरी ये बेवजह आदत छुडा दो फिर चले जाना.................................

Thursday, December 27, 2007

******इतने तो बेवफा नही*********

आप को भुला जाये इतने तो बेवफा नही,
आप से क्या गिला करे, आप से कुछ गिला नही,

शीशा-ए-दिल को तोडना उनका खेल है,
हमसे ही भुल हो गयी उनकी कोए खता नही,

काश वो अपने गम मुझे दे दे तो कुछ सुकून मिले,
वो कितना बदनसीब है गम जिसे मिला नही,

करनी है अगर वफा कैसे वफा को छोड दूं,
कहते है इस गुनाह की होती कोई सज़ा नही...................

*****दर्द की चादर******

गम के साये से खुशियो का यही कहना है,
दर्द की चादर को अब तुझसे दुर करना है.

तेरी बेवफाई से मिला है मुझको एक सबब,
मैने अपने रब को एक बार फिर से जाना है,

बुझते है जब चिराग तो रहती है ये शमा,
मुझको एक बदर फिर से इस अंधेरे मे जलना है,

देख कर खुश हाथ ये कहा मैने ये दिल से,
तुझको अब कब कब तक ये दर्द सहना है,

है खुदा से ये फरियाद के मुझे वो दे हिम्मत,
अपने रिश्ते की डोर को एक बार फिर से सीना है,

क़तरो को रोक लिया ज़िन्दगी जीने के लिये मगर,
मैने हर बार अपनी आंखो से उनका हक़ छीना है................................

*****दर्द अभी बाकी है*******

इस दिल मे भी हसरतें बाकी है,
तेरी वफा का अभी करना हिसाब बाकी है,

जो सवाल हमारे दिल की तडप ने है पुछे,
उनकी वफा मे लिखना हिसाब बाकी है,

स्याही सुख भी जाये कल तेरे लौटने तक,
तू घबराना नही मेरे रंगो मे लहुँ बाकी है,

इस ज़िन्दगी की खत्म नही किताब यही,
पन्ने दिलचस्प अभी पलटने बाकी है......................



मेरी मजबूरी है वो कोई मजबूरी तो नही,
वो मुझे चाहे या मिल जाये ज़रूरी तो नही,

ये कुछ कम है क्या बसे है मेरी सांसो मे,
वो सामने हो मेरी आंखो के ज़रूरी तो नही,

जान क़ुरबान मेरी उसकी हर मुस्कुराहट पर्
चाहत का तकाज़ा है येही अक़्ल-ए-खुरूरी तो नही,
अब तो निकल के आंखो से यादो मे जा बसे है वो.....................

Monday, December 10, 2007

*****वफा से पहले*******

रूठने की अदा हम को भी आती है मगर,
काश कोई होता हमे भी मनाने वाला......

किसी के प्यार मे गहरी चोट खाई है,
वफा से पहले ही बे-वफाई पाई है............

लोग तो दुआ मांगते है मरने की,
पर हमने उस की यादो मे जीने की कस्म खाई है................

दुशमनो मे भी दोस्त मिला करते है,
कांटो मे भी फूल खिला करते है..........

हम को कांटा समझा के छोड ना देना,
कांटे ही फुलो की हिफाज़त किया करते है......................