Monday, February 18, 2008

***********तकाज़ा*************

एक गज़ल उसपे लिखूँ दिलका तकाज़ा है बहुत,

इन दिनो खुद से बिछड जाने का धडका है बहुत.................

रात हो दिन हो गफलत हो के बेदारी हो,

उसको देखा तो नही है उसे सोचा है बहुत...........

तशनगी के भी मुकामत है क्या क्या नही,

कभी दरियाँ नही काफी कभी क़तरा है बहुत...........

मेरे हाथो की लकीरो के इज़ाफे है गवाह,

मैने पत्थर की तरह खुदको तराशा है बहुत................

***********अदावत**************

वफा के शीश महल मे सजा लिया मैने,
वो एक दिल जिसे पत्थर बना लिया मैने......

ये सोचकर के ना हो ताक मे खुशियाँ,
गमो की ओट मे खुद को छुपा लिया मैने.........

कभी ना खत्म किया मैने रोशनी का मुहाज़,
अगर चिराग बुझा दिल जला लिया मैने............

कमाल ये है के जो दुश्मन पे चलाना था,
वो तीर अपने कलेजे पे खा लिया मैने................

जिसकी अदावत मे एक प्यार भी था,
उस आदमी को गले से लगा लिया मैने...................

******रहगुज़र**********

बिगडा मेरा नसीब तो सब कुछ सवर गया,
कांटो पे मै गिरी और ज़माना गुज़र...............
तूफान से थक के मैने पटवार छोड दी,
जब डूब मै चुकी समुंद्र ठहर गया...................
टुकडे तेरे वजूद के फैले थे मेरे पास,
उनको समेटने मे मेरा वजूद बिखर गया......................
मन्ज़िल को ढूंढता था मुसाफिर ये क्या हुआ,
एक रहगुज़र पे उसका सफरब ही बिछड गया............
ढलने लगी है रात चले जाओ दोस्तो,
मुझको भी ढूंढता है मेरा घर किधर गया......................................

Thursday, February 7, 2008

****जफा*****

तुम्हे जफा से यूं ना बाज़ आना चाहिये था,
अभी कुछ और मेरा दिल दुखाना चाहिये था,

तवील रात के पहलू मे कब से सोये है,
नवीद-ए-सुबह तुझे जाग जाना चाहिये था,

बुझे चिरागो मे कितने है जो जले ही नही,
स्वाद-ए-वक़्त इन्हे जगमगाना चाहिये था,

अजब ना था के क़फ्स साथ ले के उड जाते,
तडपना चाहिये था फडफडाना चाहिये था,

ये मेरी हार के करया-ए-जान से हारा मगर,
बिछडने वाले तुझे याद आना चाहिये था,

तमाम उम्र की आसुदगी-ए-विसल के बाद,
आखिरी धोखा था खाना चाहिये था.................................

******आंखे******

दिल को तो दीवाना बना देती है आंखे,
वो हमसे बात नही करते, तो ना करे,
हाल सारा उनके दिल का सुना देती है आंखे,

गम सदा रहता है, आदमी से साथ
अश्क़ बनकर छलका देती है आंखे,

आता है जब दौर-ए-जवानी, तो ए दोस्त,
सुंदर सपने ज़हन मे बसा देती है आंखे,

माना के नींद आती है, आंखो ही के रास्ते,
मगर कभी खबर नींद भी उडा देती है आंखे,

शुक्र है खुदा ने अदा की आंखो की नेमत हमे,
दर्द-ओ-गम सारे दिल के छुपा देती है आंखे..................