Saturday, April 26, 2014

*****ग़म-ए-हयात*****

ग़म-ए-हयात का झगड़ा मिटा रहा है कोई
चले आओ के दुनिया से जा रहा है कोई......

कोई अज़ल से कह दो, रुक जाये दो घड़ी
सुना है आने का वादा निभा रहा है कोई............

वो इस नाज़ से बैठे हैं लाश के पास
जैसे रूठे हुए को मना रहा है कोई......................

पलट कर न आ जाये फ़िर सांस नब्ज़ों में
इतने हसीन हाथो से मय्यत सजा रहा है कोई.............

Friday, April 18, 2014

****मुहब्बत का महीना****

देखिये फूलों को जीना आ गया
फिर मुहब्बत का महीना आ गया...

कब तलक आखिर बचेंगे आप भी
शरबती आंखों से पीना आ गया ...

कितना मुश्किल था जुदाई का सफ़र
सामबे उनका सफीना आ गया ......

अब न टूटेंगे वफ़ा के सिलसिले
बेवफाई को पसीना आ गया ....

हर बरस की हाय बेबस दूरियाँ
चाँदनी को होंठ सीना आ गया...........

****चाहत का भरम ****

एक हम ही नहीं फिरते हैं लिए किस्सा-ए-गम
उन के खामोश लबों पर भी फसाने से मिले......

कैसे माने के उन्हें भूल गया तू ऐ
 दिल 
उन के खत आज हमें तेरे सिरहाने से मिले.........

दाग दुनिया ने दिए जख़्म ज़माने से मिले
हम को तोहफे ये तुम्हें दोस्त बनाने से मिले.....

हम तरसते ही तरसते ही तरसते ही रहे
वो फलाने से फलाने से फलाने से मिले.........

ख़ुद से मिल जाते तो
चाहत का भरम रह जाता
क्या मिले आप जो लोगों के मिलाने से मिले.................

Thursday, April 17, 2014

****ख्वाबीदा ज़िंदगी****

अशार मेरे यूं तो ज़माने के लिए हैं
कुछ शेर फ़क़त उनको सुनाने के लिए हैं...

अब ये भी नहीं ठीक की हर दर्द मिटा देंकुछ दर्द कलेजे से लगाने के लिए हैं....

आँखों में जो भर लोगे तो काँटों से चुभेंगेये ख्व़ाब तो पलकों पे सजाने के लिए हैं....

सोचो तो बडी चीज़ है तहज़ीब बदन की
वरना तो बदन आग बुझाने के लिए हैं........


ये इल्म का सौदा ये रिसाले ये किताबेंइक शख्स की यादों को भुलाने के लिए हैं............

**** टूट के आना दिल का***

अच्छी सूरत पे ग़ज़ब टूट के आना दिल का
याद आता है हमें हाय! ज़माना दिल का 

तुम भी मुँह चूम लो बेसाख़ता प्यार आ जाए 
मैं सुनाऊँ जो कभी दिल से फ़साना दिल का

पूरी मेंहदी भी लगानी नहीं आती अब तक
क्योंकर आया तुझे ग़ैरों से लगाना दिल का

इन हसीनों का लड़कपन ही रहे या अल्लाह 
होश आता है तो आता है सताना दिल का

मेरी आग़ोश से क्या ही वो तड़प कर निकले
उनका जाना था इलाही के ये जाना दिल का

दे ख़ुदा और जगह सीना-ओ-पहलू के सिवा
के बुरे वक़्त में होजाए ठिकाना दिल का

उंगलियाँ तार-ए-गरीबाँ में उलझ जाती हैं
सख़्त दुश्वार है हाथों से दबाना दिल का

बेदिली का जो कहा हाल तो फ़रमाते हैं
कर लिया तूने कहीं और ठिकाना दिल का


छोड़ कर उसको तेरी बज़्म से क्योंकर जाऊँ
एक जनाज़े का उठाना है उठाना दिल का

निगहा-ए-यार ने की ख़ाना ख़राबी ऎसी
न ठिकाना है जिगर का न ठिकाना दिल का

बाद मुद्दत के ये ऎ दाग़ समझ में आया
वही दाना है कहा जिसने न माना दिल का......