मेरी कज़ा पे वो संगदिल जशन मनायेगा,
मस्रते चिरागा को वो बेदर्दी से जलायेगा,
रोयेगी मेरी रूह ज़ार ज़ार तब मेरे मौला,
और वो मुस्कुरा के एक नया जाम उठायेगा,
ना आयेगा कभी वो मेरी मजबूर मज़ार पर,
अपनी बेरुखी से वो और मुझे तडपायेगा,
ना ज़िन्दगी ना मौत सुकून दे सकेगी तब,
जब मेरे किस्से वो हंस हंस के दोस्तो को सुनायेगा,
क्या मिला तुझको बेवफा पर मर मिट के,
क्या ऐसा रिश्ता कभी प्यार कहलायेगा ?
6 comments:
प्रियन्का जी
मेरी कज़ा पे वो संगदिल जशन मनायेगा,
मस्रते चिरागा को वो बेदर्दी से जलायेगा,
जब चिराग ही भुझ जाएगा तो कौन है बेदर्द जो फ़िर जलायेगा....
मेरी तरफ़ से पेश-ए-खिदमत
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दरिया उतर गया मगर बह गए है पुल..
उसपर आने जाने के रास्ते नही रहे.....
मेरा चराग तेज हवां के झोकों से नही बुझा,
अफ्सोश की ये अपनों की साजिश से बुझ गया|
"प्रियराज"
kya likhoon jab kaza ka matalab hi nahi pata so plz tell me what stands for kaza
jitna samjh mein aaya utna toh hamesa ki tarah lajawab hai
Gostei muito desse post e seu blog é muito interessante, vou passar por aqui sempre =) Depois dá uma passada lá no meu site, que é sobre o CresceNet, espero que goste. O endereço dele é http://www.provedorcrescenet.com . Um abraço.
सम्मानीय प्रियंका जी
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"रोयेगी मेरी रूह ज़ार ज़ार तब मेरे मौला,
और वो मुस्कुरा के एक नया जाम उठायेगा|"
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दिल को घायल कर दिया इन पंक्तियों ने कितना दर्द छुपा रखा है इस प्यार की गागर में। मेरे पास तारीफ़ कि लिए शब्द नहीं सो, शुक्रिया स्वीकार कर लीजिए ।
....कुछ तो सिला दीजिये....
सारी राह में कांटे ही कांटे हैं,
कुछ फूल आप ही बिछा दीजिये,
जागे हैं बहुत उठ - उठ कर रातों में,
अब चैन की नींद आप ही सुला दीजिये,
बहुत पीली मयखाने में जा कर,
एक बार ज़रा नज़रों से पिला दीजिये,
गिन - गिन के गुज़ारे हैं दिन कितने,
इन्तज़ार का कुछ तो सिला दीजिये।.....
"प्रियराज्"
प्रियंका जी,
नव वर्ष 2008 की शुभ-कामना
बहुत दिनों से आपका नया पैगाम नहीं आया..
तुम्हें जब मिले कभी फ़ुर्सत मेरे दिल से बोझ उतार दो,
मै बहुत दिनों से उदास हूं मुझे भी कोई शाम उधार दो।
"प्रियराज"
प्रियंका जी
दिल की हालत वोही समझे जिस ने चोट खायी हो,
इक बार नही, कयी बार, जिस ने जेहमत उठायी हो।
जिस को हर शख्श नज़र आता है अब हरजाई,
जिस ने बस दिल तोड ने की कसम खायी हो।
"प्रियराज्"
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