एक गज़ल उसपे लिखूँ दिलका तकाज़ा है बहुत,
इन दिनो खुद से बिछड जाने का धडका है बहुत.................
रात हो दिन हो गफलत हो के बेदारी हो,
उसको देखा तो नही है उसे सोचा है बहुत...........
तशनगी के भी मुकामत है क्या क्या नही,
कभी दरियाँ नही काफी कभी क़तरा है बहुत...........
मेरे हाथो की लकीरो के इज़ाफे है गवाह,
मैने पत्थर की तरह खुदको तराशा है बहुत................
27 comments:
सुश्री प्रियंका जी
आपने कटुसत्य को जिस अंदाज में पेश किया है वो काबिले तारीफ है .....
वास्तव में सहित्यकरों के लिए तो लोगों का प्रेम ही जीवन आधार होता है ...
"मेरे हाथो की लकीरो के इज़ाफे है गवाह,
मैने पत्थर की तरह खुदको तराशा है बहुत"
शानदार रचना के लिए बहुत बहुत बधाई एवम शुभकामनाएं
***सारी दुनियां शरम से पानी हुई***
इक शायर के घर की नीलामी हुई
सारी दुनिया शर्म से पानी हुई
मिले चन्द कागज़ के टुकडे रीती बोतलें
मिलि रोती तस्वीरें जिनके आंसूं पोछलें
देख के सारे जग को हैरनी हुई
तारों को पियार था जो उसने किया
जलाता था उनके लिये वो दिल का दिया
चांद के दागों को दूर उसने किया
चांदनी भी जिसकी बहुत दीवानी थी
उशी शायर के घर की नीलामी हुई
"प्रियराज"
सुश्री प्रियंका जी
दिल की गहराई आपकी इसमें शायरी को चार चांद लगाती है।
एक गज़ल उसपे लिखूँ दिलका तकाज़ा है बहुत,
इन दिनो खुद से बिछड जाने का धडका है बहुत.
********आइना********
आइना हूं मैं, मेरे सामने आ कर तो देखो,
खुद ही नज़र आओगी जो आंख मिला कर देखो।
मेरे ग़म में मेरी तकदीर नज़र आती है,
डगमगा जाओगी मेरा दर्द उठा कर तो देखो।
यूं तो आसान नज़र आता है मन्ज़िल का सफ़र,
कितनी मुश्किल है मेरी राह इसमें जाकर देखो।
बज़्म का मेरी चरगाहं है नज़र का धोखा,
किन अंधेरों में भटकता हूं मैं आकर तो देखो।
दिल तुम्हारा है मैं ये ज़ान भी दे दूं तुम पर,
बस मेरा साथ जरा दिल से निभा कर तो देखो।
मौत पर हक़ है मगर तुम से वादा है मेरा,
लौट आउंगा कब्रसे एक बार बुला कर तो देखो।
"प्रियराज"
सुश्री प्रियंका जी
होली के पावन पर्व पर मेरी ओर से आपको तथा सभी मित्रों को शुभकामनायें
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mindblowing
both of you raj ji and priyanka ji have great talent of urdu poetry called shayari
क्या लिखूं प्रियंका जी अल्फाज़ ही साथ नहीं देते पर हमेशा की तरह इस बार भी आपकी शायरी दिल को छू गयी
सुश्री प्रियंका जी
क्या बात है काफ़ी अर्से से आपके ब्लाग पर कोई पैगाम नहीं आया?
कुछ तो लिखियेगा अपने नियमित पाठकों के लिये।
"प्रियराज"
सुश्री प्रियंका जी
आप नया कुछ लिखो तो दिल को पढ कर शुकून आये: मेरी तरफ़ से पेश-ए-खिदमत....
मेरे सर पर जो टूटा था, वह मेरी क़िस्मत का तारा था।
कितनी सदियां सिमट रही थीं, एक लम्हा जब फैल रहा था।
आज मैं सेहरा मैं हूं प्यासा, कल मैं दरिया में दूबा था।
वक़्त तो गुज़र जाता है लेकिन, वो बहुत मुश्किल गुज़रा था
"प्रियराज"
***तकाज़ा***
सोचता हूं उसे नींद भी आती होगी,
या मेरी तरह फ़क़त अश्क़ बहाती होगी।
वो मेरी शक्ल मेरा नाम भुलाने वाली,
अपनी तस्वीर से क्या आंख मिलाती होगी।
शाम होते ही चोखट पर जला कर शमां,
अपने पल्कों पर कयी ख्वाब सुलाती होगी।
उस्ने सिलवा लिये होंगे सियाह रंग लिबास,
अब तो मोहर्म की तरह वो ईद मनाती होगी।
होती होगी मेरे बोस्से की तलब में पागल,
जब भी ज़ुल्फ़ों में कोई फूल सजाती होगी।
"प्रियराज"
Zara si dil mein de jagah tu,
Zara sa apna le bana
Zara sa khawbon mein saja tu,
Zara sa yaadhon mein basa
Mein chahun tujhko,Meri jaan bepanah
Fida hoon tujhpe,Meri jaan bepanah
Hai nahi hai nahi,Aashiq koi mujhsa tera,Tu mere liye bandagi...
Keh bhi de keh bhi de,
Dil mein tere jo hai chupa
Kwahish jo hai teri
Rakh nahi rakh nahi,Parda koi mujhse aye jaan
Kar le tu mera yakeen...
Mein chahun tujhko,Meri jaan bepanah,
Fida hoon tujhpe,Meri jaan bepanah.
Love Prashant
Zara si dil mein de jagah tu,
Zara sa apna le bana
Zara sa khawbon mein saja tu,
Zara sa yaadhon mein basa
Mein chahun tujhko,Meri jaan bepanah
Fida hoon tujhpe,Meri jaan bepanah
Hai nahi hai nahi,Aashiq koi mujhsa tera,Tu mere liye bandagi...
Keh bhi de keh bhi de,
Dil mein tere jo hai chupa
Kwahish jo hai teri
Rakh nahi rakh nahi,Parda koi mujhse aye jaan
Kar le tu mera yakeen...
Mein chahun tujhko,Meri jaan bepanah,
Fida hoon tujhpe,Meri jaan bepanah.
Love Prashant
सुश्री प्रियंका जी!
"मेरे नगमे" के नियमित पाठक आजकल इंतज़ार में हैं पिछ्ले 84 दिनों से। क्या भविष्य में हम आपकी शायरी पढ्ने से महरूम रहेंगे? कुछ तो लिखियेगा प्रियंका जी
"प्रियराज"
सुश्री प्रियंका जी
जरा इघर भी गौर फ़रमाइएगा
+++++तेरा हमसफ़र कहां है+++++
ये चिराग बेनज़र है या फ़िर सितार बेज़ुबान है,
अभी तुमसे मिलता जुलता कोई दूसरा कहां है।
शख्स जिसपे अपना दिल-ओ-जान निसार कर दूं,
वो अगर खफ़ा नहीं है तो फ़िर ज़रूर बदगुमान है।
कभी पा के तुमको खोना कभी खो के तुमको पाना,
ये जन्म-जन्म का रिश्ता तेरे मेरे ही दरमियान है।
मेरे साथ ना चलने वाले तुम्हे क्या मिला सफ़र में,
वही दुख भरी ज़मीन और वही गमों के असमान हैं।
मैं इसी गुमान में वर्षों तक बडा मुतमीन रहा हूं,
तुम्हारा दिल बेतागयुर है मेरा प्यार जीवनदान है।
उन्ही रास्तों ने जिन पर कभी तुम थे साथ मेरे,
मुझे रोक के लोग पूछ्ते हैं तेरा हमसफ़र कहां है।
"प्रियराज"
सुश्री प्रियंका जी
जरा इघर भी गौर फ़रमाइएगा
कभी आंसू कभी ख़ुशी बेची
हम ग़रीबों ने बेकसी बेची
चंद सांसे ख़रीदने के लिये
रोज़ थोडी सी ज़िन्दगी बेची
जब रुलाने लगे मुझे साये
मैं ने उक़्ता के रौशनी बेची
एक हम थे कि बिक गये ख़ुद
वरना दुनिया ने दोस्ती बेची...
"प्रियराज"
कुछ तो लिखियेगा प्रियंका जी
ज़िस फसाने को आंखों से खेते रहे है हम,
उन्ही लफ़्ज़ो को होठो पे लाकर हम भी देखेगे,
प्यार वह जज़्बा है जो पत्थर को पिगला दे,
तो हम भी इस पत्थर से दिल लगाकर देखेगे,
ज़रूरी नही तुम बदले में 'राज' को प्यार करो,
ख़ुद-ही-ख़ुद को तुम पर मिटाकर हम भी देखेगे।
"प्रियराज"
मत देखो सपने किसी के लिये इस कदर,
ज़ब टूट जाये तो फिर इसका दुख न हो,
मत चाहो दिल से कभी किसी को इस कदर,
वह रूठ जाये तो मनाने वाला कोई ना हो,
न मांगो किसी को इस कदर दुआओं में,
वो न मिले तो रुसवायी के सिवा कुछ न हो,
कभी देखो न किसी को ऐसी नज़रों से,
ज़ब वो जाये तो देखने वाली कोई नज़र न हो,
ना बसाओ किसी को अपने दिल की नगरी में,
वो रुख्सत हो तो दिल की दुनियां आबाद ना.....हो
Dear All,
Aap Logon Ka Bahut Bahut hsukkriya, Ki Aapne Meri Absense mein Mere Blog ko Saraha.....
Only for my Special Viewer.....
गुमनामियों मे रहना, नहीं है कबूल मुझको..
चलना नहीं गवारा, बस साया बनके पीछे..
वोह दिल मे ही छिपा है, सब जानते हैं लेकिन..
क्यूं भागते फ़िरते हैं, दायरो-हरम के पीछे..
अब “दोस्त” मैं कहूं या, उनको कहूं मैं “दुश्मन”..
जो मुस्कुरा रहे हैं,खंजर छुपा के अपने पीछे..
तुम चांद बनके जानम, इतराओ चाहे जितना..
पर उसको याद रखना, रोशन हो जिसके पीछे..
वोह बदगुमा है खुद को, समझे खुशी का कारण..
कि मैं चेह-चहा रहा हूं, अपने खुदा के पीछे..
इस ज़िन्दगी का मकसद, तब होगा पूरा ...
जब लोग याद करके, मुस्कायेंगे तेरे पीछे
Thanks a Lot Mis Priyanka Ji to come on Blog and safe-fuard our right to read you again and agian infuture.
टूटा हुवा शीशा फिर जोडा नही जाता,
आंख से निकला आंसू फिर वपिस नही आता,
तुम तो कह कर भूल चुकी हो सब कुछ,
ळेकिन मुझसे वो पल भुलाया नही जाता,
तुम्हारी मोह्ब्बत ने ज़ंजीरें डाली हैं ऐसी,
कि छुडाना भी चाहूं तो छुडाया नहीं जाता,
महफ़िल में भी मुझ को तन्हाई नज़र आती है,
तुम्हारे बिन दिल कहीं और लगाया नहीं जाता,
तुम्हारी मोह्ब्बत ने ज़ंजीरें डाली हैं ऐसी,
कि छुडाना भी चाहूं तो छुडाया नहीं जाता,
महफ़िल में भी मुझ को तन्हाई नज़र आती है,
तुम्हारे बिन दिल कहीं और लगाया नहीं जाता,
मेरे दिल की दीवारों पर सिर्फ़ तेरा ही नाम लिखा है,
मैं मिटाना भी चाहूं तो मिटाया नहीं जाता,
सांस रुकने से पहिले एक झलक दिखला जाना,
इस बेवफ़ाअ ज़िन्दगी का ऐतबार किया नहीं जाता...
"प्रियराज"
Miss Priyanka ji
I feel very sorry to say that: Great Misfortune is Around Four Sides with me and in Grip of Life's Griefness. If I did any wrong please forgive me.
"Priyraj"
हंसने के बाद क्यों रुलाती है दुनियां,
मरने के बाद क्यों भुलाती है दुनियां,
जीते जी क्या कोई कसर रह जाती है,
जो मरने के बाद भी जलाती है दुनियां...
सुश्री प्रियन्का जी
कभी निकालिये फ़ुर्सत चार लाईनें लिखने
के लिये चार महिनों से आपने लिखा नहीं: तो हम ही लिख देते हैं:
*********
********इम्तिहान*********
शमा जलाये रखना ज़ब तक कि मैं न आऊं!
ख़ुद को बचाये रखना ज़ब तक कि मैं न आऊं!
यह वक़्त इम्तिहान है सब्र-ओ-करार-ओ-दिल का!
अपने आंसू छुपाये रखना ज़ब तक कि मैं न आऊं!
हम तुम मिलेंगे ऐसे जैसे कभी ज़ुदा न थे!
सांसें बचाये रखना ज़ब तक कि मैं न आऊं...
"प्रियराज"
सुश्री प्रियन्का जी
"मेरे नगमे" के नियमित पाठक आजकल इंतज़ार में हैं पिछ्ले 154 दिनों से। क्या भविष्य में हम आपकी शायरी पढ्ने से महरूम रहेंगे? कुछ तो लिखियेगा
******बेचैन दिल******
मुझे पता नहीं ऐसा क्या हो जाता है,
नींद आती नहीं और चैन खो जाता है,
सोचते हुए फिर दिल बेचैन हो जाता है,
ख्वाब खुली आंखों में कुछ ऐसा आता है,
कि आपके हाथ हमारे हाथों में,
और सर हमारे कंधे पे नज़र आता है.
"प्रियराज"
jindgi me kabhi koi aaye na rabba
Aaye to phir kabhi jaye na rabba
Dene ho jo bad me ashoo
To pahle koi hasaye na rabba
सुश्री प्रियंका जी!
"मेरे नगमे" के नियमित पाठक आजकल इंतज़ार में हैं पिछ्ले 234 दिनों से। क्या भविष्य में हम आपकी शायरी पढ्ने से महरूम रहेंगे? कुछ तो लिखियेगा.......प्रियंका जी !!!
ज़गह नहीं बदली कभी उनके इन्तज़ार की,
उस जगह पर अब शख्स नये आते रहे,
उस नज़र में कभी एक झलक थी हमारी,
यही सोच कर हमेशा हम दिल बहलाते रहे,
जिनके दिल में जगह ना थी हमारे लिये,
हम उनकी यादों को दिल से लगाते रहे,
उन्हें भूल पाने की एक नाकाम कोशिश में,
हम उन्हें याद करके उनकी यादें भुलाते रहे...
"प्रियराज"
उल्फत का अक्सर यही दस्तूर होता है,
जिसे चाहो वही अपने से दूर होता है,
दिल टूटकर बिखरता है इस कदर,
जैसे कोई कांच का खिलौना चूर-चूर होता है,
उसके साथ आज सारी महफिल है,
अब ज़माना भी उसके साथ है,
आज मैं तन्हा हूँ, अब मैं अकेला हूँ,
बस रुसवाईया ही मेरे साथ है...... .
मेरी कब्र पे आके तुम आवाज़ नहीं करना
दर्द की नई दास्ताँ का आगाज़ नहीं करना,
अपनी बेबस्सी को खुद ही बयान करेगी यूं,
चेहरे को किसी आईने का मोहताज नहीं करना,
राज़ जो खुद से ही ना छिपा पाओगी तुम,
ऐसे राज़ मे किसी को हमराज़ नहीं करना,
नामुमकिन है हकीकत के आसमान मे उड़ना,
खाबों के सहारे इसमें परवाज़ नहीं करना,
ज़ख्म फिर ज़ख्म हें इक रोज़ भर जायंगे,
हुश्न वालों को इनके चारासाज़ नहीं करना,
खाख से बनी हो खाख मे मिल जाओगी,
कभी भूले से भी खुद पे नाज़ नहीं करना....!
Priyanka ji,
Jo bhi kuchh hua bahut bura hua hai. Pata to chala ki dost kaise dushman ban gayee. Zindagi bhar nahi bhool paaunga is dosti ko !!
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