बिगडा मेरा नसीब तो सब कुछ सवर गया,
कांटो पे मै गिरी और ज़माना गुज़र...............
तूफान से थक के मैने पटवार छोड दी,
जब डूब मै चुकी समुंद्र ठहर गया...................
टुकडे तेरे वजूद के फैले थे मेरे पास,
उनको समेटने मे मेरा वजूद बिखर गया......................
मन्ज़िल को ढूंढता था मुसाफिर ये क्या हुआ,
एक रहगुज़र पे उसका सफरब ही बिछड गया............
ढलने लगी है रात चले जाओ दोस्तो,
मुझको भी ढूंढता है मेरा घर किधर गया......................................
3 comments:
सुश्री प्रियंका जी
वाह वाह, कितने खूबसूरत अल्फ़ाज चुने हैं आपने
"बिगडा मेरा नसीब तो सब कुछ संवर गया,
काटों पर मैं गिरी और जमाना गुजर गया"
इसने तो हमें घायल ही कर दिया, जवाब नही बेमिसाल शायरी है यह आपकी..
कुछ इस तरह पेश-ए-खिदमत है....
*****आज मुझे रुला दिया*****
सबसे छुपा के दर्द वो मुस्करा दिया,
उसकी हंसी ने तो आज मुझे रुला दिया।
लहजे से उठ रहा था हर एक दर्द का धुआं,
चेहरा बता रहा था कि बहुत कुछ गवां दिया।
आवाज में ठहराव था और आंखो में नमी थी,
और कह रही थी कि अब मैंने सब भुला दिया।
ना जाने लोगों से क्या थी उसको मुझसे शिकायत,
तन्हाईयों के देश में खुद को ही अब बसा लिया।
"प्रियराज"
सुश्री प्रियंका जी
होली के पावन पर्व पर मेरी ओर से आपको तथा सभी मित्रों को शुभकामनायें |
+++++++दर्द का रिश्ता+++++++
तुम से दर्द का रिश्ता जुड़ गया है कुछ ऐसे,
हँसते हुए भी आँखों में नमी सी रहती है |
कभी जो गुजारो तो देखना तेरे हिजर में,
हर शाम मेरे आंगन की उदास सी रहती है|
बसर हो रही है ज़िन्दगी लम्हों के साथ साथ,
मेरे इस सफर में मगर तेरी कमी सी रहती है|
"प्रियराज"
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