Saturday, April 26, 2014

*****ग़म-ए-हयात*****

ग़म-ए-हयात का झगड़ा मिटा रहा है कोई
चले आओ के दुनिया से जा रहा है कोई......

कोई अज़ल से कह दो, रुक जाये दो घड़ी
सुना है आने का वादा निभा रहा है कोई............

वो इस नाज़ से बैठे हैं लाश के पास
जैसे रूठे हुए को मना रहा है कोई......................

पलट कर न आ जाये फ़िर सांस नब्ज़ों में
इतने हसीन हाथो से मय्यत सजा रहा है कोई.............

2 comments:

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

वाह... उम्दा भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
नयी पोस्ट@मतदान कीजिए
नयी पोस्ट@सुनो न संगेमरमर

Priyanka Srivastava said...

प्रस्तुतीकरण के लिए सादर धन्यवाद...