शाम से ही बुझा सा रहता है,
दिल है गोया चिराग मुफ्लिस का,
शब भर था इन्तेज़ार के फूटेगी रोशनी,
जागे तो रोशनी को अंधेरे निगल गये,
दिन तो कट जाता है हंगामो मे,
रात आती है तो बस आके ठहर जाती है,
नींद तो खैर इन आंखो के मुक़द्दर मे नही,
मौत भी क्या जाने कहाँ जा के मर जाती है..................................
2 comments:
सुश्री प्रियंका जी
नींद तो खैर इन आंखो के मुक़द्दर मे नही,
मौत भी क्या जाने कहाँ जा के मर जाती है
बहुत खूब, वास्तव मे दिल तो घायल है अब कुछ लम्हों के लिये यह पयाम जोड देता हूं-
******पयाम किसी ने ना लिखा******
सबने जवाब दिये अपना कलाम किसी ने ना लिखा,
चन्द इशारों में अपना सलाम किसी ने ना लिखा।
खुद को कोसें कि या गैरों को इल्ज़ाम दें हम,
मुझ नाचीज़ को अपना पयाम किसी ने ना लिखा।
mindblowing priyanka ji
no more words i have to tell anything alse about your this poetry
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