ये ना समझो के बिछडी हूँ तो भूल गयी हूँ,
तेरी दोस्ती की खुशबू मेरे हाथो मे आज भी है,
मोहब्बत से बढ कर मुझे अक़ीदत है दोस्त तुमसे,
यूं मुक़ाम तेरा बुलंद सब दोस्तो मे आज भी है,
तू वो है जो बरसो की तलाश का सामान है,
तुम्हे सोचना मेरी यादो मे आज भी है,
ये और बात है के मजबूरियो ने निभाने ना दी दोस्ती,
वरना शामिल सच्चाई मेरी वफाओ मे आज भी है,
मेरा हर शेर मेरी चाहतो की गवाही देगा,
चाहतो की खुशबू इन लफ्ज़ो मे आज भी है,
हर लम्हा ज़िन्दगी मे मोहब्बत नसीब हो तुझे,
शामिल तू मेरे दुआओ मे आज भी है.......................
3 comments:
सुश्री प्रियंका जी
किन अल्फ़ाजों में आपकी तारीफ़ करूं,
"मेरा हर शेर मेरी चाहतो की गवाही देगा,
चाहतो की खुशबू इन लफ्ज़ो मे आज भी है,"
एक जन्म और लेना होगा शब्दों की माला को पिरोने में।
******मरहम समझ के हमने चाहा******
जिसको मरहम समझ के हमने चाहा हाले दिल कहना,
जितना करीब आया उतना ही अजनबी सा लगा।
जिस भीड से आज तक रूह मेरी डरती रही,
उस भीड में एक चेहरा तुम्हारा रोशनी सा लगा।
++प्रियराज++
मैं क्या कहूं मैं राज जी से पूरी तरह इत्तेफाक रखता हूँ और राज जी को शायद अगले जन्म में अल्फाजों को पिरोना आ जाये लेकिन मैं तो सात जन्मों में भी इस फन से महरूम रहूँगा
लेकिन हाँ मैं आपकी ज़ज्बातों को लफ्जों में पिरोने के फन का कायल हूँ
आशीष जी
हौसला अफ़जाई के लिए आपका तहेदिल से शुक्रिया । जब लगती है कोई चोट कलेजे पे तो जिन्दगी भर भीतर से निकलती हैं, "आहें" वो ही दर्द सालता है लिखते समय। प्रियंका जी ने यह जो यह मंच दिया अपनी बात कहने का, सो उन्हें "साधुवाद", और आपका "आभार" ।
"प्रियराज"
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