Thursday, January 24, 2008

******रफाकत*******

दोस्त क्या खूब वफाओ का सिला देते है,
हर नये मोड पे एक दर्द नया देते है,

तुम से खैर घडी भर का ताल्लुक रहा,
लोग सदियो की रफाकत भुला देते है,

कैसे मुम्किन है धुआँ भी ना हो और दिल भी जले,
चोट पडती है तो पत्थर भी सदा देते है,

कौन होता है मुसीबत मे किसी का ए दोस्त,
आग लगती है तो पत्ते भी हवा ही देते है,

जिन पे होता है दिल को भरोसा,
वक़्त पडने पे वही लोग धोखा भी देते है..........................................

2 comments:

Anonymous said...

excellent priyanka ji
but if word "लोग" would have been removed from last line,last stanza become more attracive..........
i beg your pardon for this suggestion because i'm nothing before your poetry talent,however i make this this guilty.

Raj said...

सुश्री प्रियंका जी

"जिन पे होता है दिल को भरोसा,
वक़्त पडने पे वही लोग धोखा भी देते है"
"लोग" के धोखे पर आपने अपने जो जज्बात् लिखे ऐसा लगा कि छोटी सी उमरिया में लगा हो प्यार का रोग।

*** उंग्लियां उठाते हैं ये लोग***

उनके आने की जब कोई उमीद नहीं बाकी,
फ़िर क्यों देहलीज पर शमा जलाए बैठी हैं।

इक तुम ही नहीं जिसने हमें भुला दिया,
इक वो हम भी हैं जो खुद को भुलाए बैठे हैं।

तुम्हें भूलने की कोशिश तो बहुत करते हैं हम,
पर याद उस ही की दिलाते हैं यह ही लोग।

वही लोग तो कहते हैं मुस्कुराते रहो हरदम,
फ़िर जिकर उसका ही छेडकर रुलाते हैं ये लोग।

पहले तो कहा मुझसे कि ये रास्ता बहुत ठीक है,
हम चले तो हर कदम पे उंग्लियां उठाते हैं ये लोग।

"प्रियराज"