Friday, December 28, 2007

*****फरेब-ए-मोहब्बत******

तू जो बदल गया तो सहर-ए-आरज़ू,
ऐसा उजड गया के बसा आज तक नही,

दिल मे तेरे फरेब-ए-मोहब्बत के कुछ नक़्श,
यूं सभा हुए के मिटे आज तक नही,

जिनके बेगैर रात ना दिनको सकून था,
वो ऐसे खो गये के मिले आज तक नही,

तेरे दिये हुए वो मोहब्बत भरे खत,
इस तरह जल गये के बची राख तक नही,

अब हम भी सोचते है इसे भुल जाये,
लेकिन ये बात दिल से कही आज तक नही

3 comments:

Raj said...

शायरानी प्रिया जी
बहुत खुब क्या नजराना पेश किया है मोहब्बत के खतों का.......
"तेरे दिये हुए वो मोहब्बत भरे खत,
इस तरह जल गये के बची राख तक नही"
हमसे भी रहा न गया सो कह ही दिया इस तरह.......
*** आज मेरे जज्बात सुनने दे***
माफ़ करना मेरे मौला मुझे, हट गया हूं मक्सद से;
ताकत बख्श दे मुझे, आज मेरे जज्बात सुनने दे।
इस पार से उधर का मन्ज़र दिखता है हसीन बडा;
रहम कर मुझ पर कि मुझे, उस जानिब तो आने दे।
"प्रियाराज"

Raj said...

शायरानी प्रिया जी
बहुत खुब क्या नजराना पेश किया है मोहब्बत के खतों का.......
"तेरे दिये हुए वो मोहब्बत भरे खत,
इस तरह जल गये के बची राख तक नही"
हमसे भी रहा न गया सो कह ही दिया इस तरह.......
*** आज मेरे जज्बात सुनने दे***
माफ़ करना मेरे मौला मुझे, हट गया हूं मक्सद से;
ताकत बख्श दे मुझे, आज मेरे जज्बात सुनने दे।
इस पार से उधर का मन्ज़र दिखता है हसीन बडा;
रहम कर मुझ पर कि मुझे, उस जानिब तो आने दे।
"प्रियाराज"

Anonymous said...

you took a very good theme priyanka ji but this time your arrangements of words is not attractive as before,nevertheles excellent again
girraj ji aapki hazir jawabi lajawab hai kas khuda ne hamein bhi is hunar se nawaza hota