कुछ उनसे मोहब्बत मे सौगात ये लाये है
दिल मे मजमा-ए-गम हम उनका बसाये है,
खुद हो बैठे घायल इस जंग-ए-मोहब्बत मे
कुछ तीर मोहब्बत के हमने भी चालाये है,
वो पास नही तो क्या पर दुर नही हम से
दिल मे है हमारे ही चाहे वो पराये है,
कैसे कह दूं तन्हा दिन-रात गुज़रते है
दिल मे लम्हा-लम्हा वो है के समाये है,
ना पूछो ये हम से अश्को का सबब क्या है
कुछ ज़ख्म मोहब्बत के ताज़े हो आये है...............................
2 comments:
simply great.........
ना पूछो ये हम से अश्को का सबब क्या है
कुछ ज़ख्म मोहब्बत के ताज़े हो आये है..
I appriciate your presentaion about "Ashaq" & "Jakham" very nice.
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