Thursday, October 25, 2007

*****बयान-ए-रक़ीब*******

तुम और फरेब खाओ बयान-ए-रक़ीब से
तुमसे तो कम गिला है ज़्यादा है नसीब से,

गोया तुम्हारी याद ही मेरा इलाज है
होता है पहरो ज़िक्र तुम्हारा तबीब से,

बर्बाद-ए-दिल का आखिरी सरमाया थी उम्मीद
वो भी तो तुमने छीन ली मुझ गरीब से,

धुन्धला चली निगाह दम-ए-वापसी है अब
आ पास आ के देख लू तुझको करीब से................

2 comments:

Anonymous said...

again excellent............

Raj said...

धुन्धला चली निगाह दम-ए-वापसी है अब
आ पास आ के देख लू तुझको करीब से................
I appriciate these line by Heart.
very fine and attracting poem.

"Apni Bebasi"

Aakhon ke ishaare wo samajh nahi pate,
Hothon per hain magar kuch keh nahi pate,
Apni bebasi kis tarah bayaan kare.....
Koi hai jinke bina hum reh nahi paathe..

"Priyraj"