Thursday, October 25, 2007

*****तम्मना******

मै हूँ या तू है, खुद से गुरेज़ा जैसे,
मेरे आगे कोई साया है, खरमान जैसे,

तुझसे पहले तो बहारों का, ये अंदाज़ ना था,
फूल यू खिलते है, जलता हो गुलिस्तान जैसे,

यूं तेरी याद से होता है, उजाला दिल मे
चाँदनी मे चमक उठता है, बयाबान जैसे,

दिल मे रोशन है, अभी तक तेरे वादो के चिराग
टूट-ती रात के तारे हो, फरोज़न जैसे,

तुझे पाने की तम्मना, तुझे खोने का यक़ीन,
तेरा वजूद, मेरे माहौल मे गलतान जैसे,

वक़्त बदला पर, ना बदला मेरे मयार-ए-वफा,
आंधियो मे, सर-ए-कोहसार चरागन जैसे,

ज़ख्म बढाता है ज़माना, मगर इस तरह,
सी रहा हो कोई, फूलो के गिरेबान जैसे...........

3 comments:

Raj said...

प्रियाजी
जवाब नहीं है मेरे पास आपके इस कलाम का
"ज़ख्म बढाता है ज़माना, मगर इस तरह,
सी रहा हो कोई, फूलो के गिरेबान जैसे.."

***मैं.....खुश.....हूं***

जख्म अपना छुपा कर मैं खुश हूं
दर्द अपना दबा कर भी मैं खुश हूं
तुम नफरत मुझसे करके भी खुश हो
तुम्हारी खुशी में शामिल होके खुश हूं
प्रियराज

Anonymous said...

bahut khub priyanka ji.............
Wo yaro ki mehfil, wo muskurate pal,
Dil se juda hai apna bita hua Kal,
Kabhi jindagi guzjarti thi Waqt bitane me,
Aaj waqt guzar jata hai chand kagaj ke note kamane me......

Anonymous said...

....Yaadein thi....

Unki bhuli-bisri woh kaisi yaadein thi,
Yaadein kya thi khud se mulaqatein thi
Mann ki gahrayee mein dooba dekhta raha
Seep mein moti se bhi mehngi unki baatein thi

Yehi baat he na Priya?
Aapki
P..O..O..J..A