Friday, June 8, 2007

*****खामोशी********


कुछ तो गुस्ताख़ियों को मुहलत दो,
अपनी पलकों को हम झुकाते हैं.

वो तो है दिल की नादानी,
जुर्म मुझसे कहाँ हुआ है वो.

जिसने रक्खा है कैद में मुझको,
खुद रिहाई है माँगता मुझसे.

वो मनाने तो आया मुझे,
रूठ कर ख़ुद गया है मगर..................

इन अहसासों से गुज़रते हुए दिल में एक खामोशी कहीं बहुत गहरे तक छिप कर बैठ जाती है, लेकिन कमाल है यह ख़ामोशी बोलती है, चुप रह कर बात करती है, वह बड़ी खूबी से इस बात का जि़क्र करते हुए कह रही है !

3 comments:

Uttam said...

Bahut badhiya!! priyanka!!
Khaas kar ke eh lines
जिसने रक्खा है कैद में मुझको,
खुद रिहाई है माँगता मुझसे.

Aur eh nagma mohabbat se shuru hokar,bewafai se hote hue Tanhaai tak pahunch jaata hai.. Yahi baat hamein bahut acchi lagi..

Chaliye hamaari bhi thodi daastaan suniye..

Mohalat bhi mili aur jhuki palakein bhi..
Magar gustaakhiyaan karne ki himmat na mili..
Woh jo bin maange rehaai de kar chala gaya hai..
Shayad use khaamoshiyon ko sun ne ki fursat na mili..
(genuinely uttams)

Anonymous said...

प्रियंका जी लाजवाब बहुत खूब । कुछ कहने के लिये मेरे पास तो शब्दों का अभाव हो जाता है । क्या करूं । परन्तु मौन की अपनी भाषा है । अतैव मैं इतना ही कहूंगा कि मुझे आपके शब्द बहुत गहराई तक स्पर्श करते हैं जिसको मैं शब्दों में नहीं सकता ।

Raj said...

"मरहम साथ ले गए"

मरहम साथ ले गए,
लगा आग पानी बिखेर कर चले गए,
आज भी रोता है दिल उनकी याद में,
पर क्या करु दिल तोडकर,
आंसू साथ ले गए,