Thursday, April 12, 2007

****ऐसा भी हो सकता है*****


करके मोहब्बत अपनी खता हो.. ऐसा भी हो सकता है..
वोह अब भी पाबंद-ए-वफ़ा हो.. ऐसा भी हो सकता है..

दरवाजे पर आहट सुनके उसकी तरफ़ ध्यान क्यूं गया..
आने वाली सिर्फ़ हवा हो.. ऐसा भी हो सकता है..
वोह अब भी पाबंद-ए-वफ़ा हो.. ऐसा भी हो सकता है..

अर्ज़-ए-तलब पे उसकी चुप से ज़ाहिर है इंकार मगर..
शायद वो कुछ सोच रहा हो.. ऐसा भी हो सकता है..
वोह अब भी पाबंद-ए-वफ़ा हो.. ऐसा भी हो सकता है..

खून-ए-तमन्ना करना उसका शेवा है मंज़ूर मगर..
हांथ मे उसके रंग-ए-हिना हो.. ऐसा भी हो सकता है..
वोह अब भी पाबंद-ए-वफ़ा हो.. ऐसा भी हो सकता है..

करके मोहब्बत अपनी खता हो.. ऐसा भी हो सकता है..
वोह अब भी पाबंद-ए-वफ़ा हो.. ऐसा भी हो सकता है..

Regards,

4 comments:

शैलेश भारतवासी said...

प्रियंका जी,

बहुत अच्छा किया कि आपने ब्लॉग बना लिया। आपकी ग़ज़लें हालाँकि ऑरकुट वाले तो खूब पढ़ रहे थे। अब ब्लॉगर भी पढ़ेंगे।

आप अपना ब्लॉग नारद, हिन्दी-ब्लॉग्स आदि एग्रीगेटर पर पंजीकृत करें। वैसे मैंने इसका लिंक हिन्द-युग्म से जोड़ दिया है।

Unknown said...

VERY GOOD. YOU ARE REALLY VERY TALENTED

Priyanka Srivastava said...

Shukkriya
Shailesh Ji
Aapne Iss Nacheez Ko Iss Qaabil Samjha

Anonymous said...

simply great