Wednesday, January 30, 2013

****तमाशा****

मेरी जिंदगी को एक तमाशा बना दिया उसने,
भरी महफिल में तन्हा बिठा दिया उसने.

ऐसी क्या थी नफरत उसको मेरे मासूम दिल से,
खुशियाँ चुरा कर गम थमा दिया उसने.

बहुत नाज़ था उस की वफ़ा पे कभी हम को,
मुझ को हे मेरी नज़रों में गिरा दिया उसने.

किसी को याद करना तो उनकी फितरत में नहीं,
हवा का झोंका समझ कर भुला दिया उसने.

1 comment:

dr.mahendrag said...

बहुत नाज़ था उस की वफ़ा पे कभी हम को,
मुझ को हे मेरी नज़रों में गिरा दिया उसने.
वाह खूब सुन्दर कृति