Wednesday, January 30, 2013

***गम***

खंजर के वार तो मै, हाथों से रोक दूं !
शब्दों का तीर मेरे, दिल में उतर गया............



ये कैसी मोहब्बत कहाँ के फ़साने,
ये पीने पिलाने के सब है बहाने,

चलो तुम भी ‘गुमनाम’ अब मैकदे में,
तुम्हे दफन करने हैं कई गम पुराने,..........

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