Friday, October 19, 2007

******नक़्श******


बिछडा है तो एक पल भी बुलाया नही जाता
वो पहेली मुलाक़त का नक़्श मिटाया नही जाता


एक शक्स की आवाज़ पे यूं दौड रही हूं
गर वक़्त भी रूक जाये तो भी ठहरा नही जाता


जब बात करू उस से तो नज़रे नही उठाती
और नज़रे उठाती हूं तो बोला नही जाता


खो जाती है आंखे भी नींद भी दिल भी
एक उस से जो मिल ना लू तो मेरा क्या नही जाता.

2 comments:

Raj said...

प्रियाजी.....
एहसास होता है कि कोई दैविक शक्ति हो
[एक शक्स की आवाज़ पे यूं दौड रही हूं
गर वक़्त भी रूक जाये तो भी ठहरा नही जाता]

*** अब भुलाना मुमकिन नहीं***

मे भूल जाऊं तुम्हें अब यह मुमकिन नहीं
मगर भुलाना भी चाहूं तो किस तरह भुलाऊं
कियूं कितुम हकीकत हो कोई ख्वाब नहीं
इस दिल का क्या आलम है क्या कहूं
भुला न सका वह सिलसिला जो कभी था नहीं
मुझे याद है सब कुछ जो कभी हुआ ही नहीं
"प्रियराज"

Anonymous said...

Dil - E - Barbad se nikla nahi ab tak koi,
Ek lutey ghar pe diya karta hai dastak koi,
Aas jo toot gayee phir se bandhata kyon hai?
Koi yeh kaise bataye ke wo tanha kiyon hai?

P...O...O...J...A