Saturday, October 20, 2007

*******बेगाना********

जबसे तुमने हमको यूं बेगाना कर दिया
दिल ने रोने का कोई ना कोई बहाना कर दिया,

आया था कोई नक़ाबपोश खंजर लिये हुए
जानकर भी हमने उसे अंजाना कर लिया,


गयी रुठो मे आया था सैलाब इश्क़ का
जिसने बहार से मेरे घर को वीरान कर दिया,


प्यासा ही रखा समुंद्र ने हमे
अब सेहरा मे हमने अपना बसेरा कर लिया...........

2 comments:

Anonymous said...

again excellent..........

Raj said...

प्रिया......हमको नहीं अब कोई गिला.......
जब इश्क ने ही घर को वीरान कर दिया तो अब इसे छोड भी नहीं सकते

गयी रुठो मे आया था सैलाब इश्क़ का
जिसने बहार से मेरे घर को वीरान कर दिया,


......हमको नहीं अब कोई गिला.......

घायल किया जब अपनों ने, तो गैरों से गिला किया करना
उठाये हैं खंजर जब अपनों ने,तो ज़िन्दगी की तमन्ना किया करना
दिल था एक कांच का घर , सो आखिर वो भी टूट गया

किस्मत मं लिखे हैं जब गम,तो खुदा से गिला किया करना
तरसता रहा ज़िन्दगी भर जिन सच्चे रिश्तों के लिये
जब उन्होने ने ही ठुकरा दिय, तो गैरों से तक्वा किया करना

जिस को समझा था अपना, जिस को बनाय था अपना राजदार
उसी ने जब दिल तोड दिया, तो गैरों को अपना कर किया करना

मुस्कुराना जो भूल गया होठों से ,तो क्या हुआ अब
गम को बना लिया है अपना, तो मुस्कुरा के अब क्या करना

प्रियराज