मेरे दर्द-ए-दिल की थी वो दास्तान, जिसे हंसी मे तुमने उडा दिया
जिसे बचाया था सम्भल सम्भल कर, वो दर्द तुमने जगा दिया
मुझे प्यार का शौक ना रहा, मेरे दोस्त भी है सब बेवफा
जो करीब आये तो ज़िक्र हुआ, जो दूर हुए तो भूला दिया
वो जो मिलते थे कभी रात मे, गिले होते थे उनकी हर बात मे
ना वो दिल रहा, ना वो दोस्त रहा, मैने ख्वाबो को भी सूला दिया
वो तो कहते थे हर बात मे, कि हम ही बसते थे उनकी ज़ात मे,
मै ना जान सकुंगी ये कभी, क्यों मुझको दिलसे भूला दिया.
2 comments:
प्रिया जी
क्या कहने हैं आपके शबाब की इस रचना के इससे तो मुर्दे में जान आ जाएगी
मैं भी कोशिश करता हुं कुछ सांस ले लूं
****आगोश में छुपा लो मुझको***
अपने आगोश में एक रोज छुपा लो मुझको
गम्-ए-दुनियां से मेरी जान बचा लो मुझको
उनको दे दी है इशारों में इज्जत मैंने
गर मांगने से ना मिलूं तो चुरा लो मुझको
अपने साये से भी अब तो मुझको डर लगता है
हो गर मुमकिनतो निगाहों में छुपा लो मुझको
दिल में नाकाम तमन्नाओं का तूफान् सा है
मेरी उलझन मेरी वहसत से भी निकालो मुझको
एक सखा........प्रियराज
khub kahi priyanka ji aapne aur raj ji ne!
bahut khub..........
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