मेरी तेरी निगाह मे जो लाख इन्तेज़ार है
जो मेरे तेरे तन बदन मे लाख दिल फिगार है
जो मेरी तेरी उंगलियो की बेहिसी से सब क़लाम नज़ार है
जो मेरे तेरे शहर की हर एक गली मे
मेरे तेरे नक़्श-ए-पा के बे-निशान मज़ार है
जो मेरी तेरी रात के सितारे ज़ख्म ज़ख्म है,
जो मेरी तेरी सुबह के गुलाब चाक चाक है
ये ज़ख्म सारे बे-दवा ये चाक सारे बे-रफु,
किसी पे राख चाँदकी किसी पे उस का लहू
ये है भी या नही बताये है की महज़ जाल है,
मेरे तुम्हारे अन्काबू-ए-वहम का बुना हुआ
जो है तो इस का क्या करे..........
नही है तो भी क्या करे...................
3 comments:
प्रियाजी
कितने दिनों से आंचल में छुपा कर रखे थे प्यार के इस राज को आज देखा तो जाना हकीकत में ही प्यार का महा सागर है तुम्हारी शायरी मे....
*****याद में तेरी*****
याद् में तेरी आंहें भ्ररता है कोई...!
सांस के साथ तुम्हें याद करता है कोई!!
मौत सच्ची है एक रोज सबको आनी है!!!
फिर भी तुमसे जुदाई में रोज मरता है कोई!!
"प्रिय्रराज"
bahut khub lekin lagta hai mujhe apni urdu aur strong karni hogi
Wonderful..
I am wondering..
Really
Wondering..
Start publishing books buddy..
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